Thursday, 1 February 2024

Wetland - आर्द्रभूमि - Sirpur Lake Indore

 

प्रत्येक वर्ष 2 फरवरी को विश्व आर्द्रभूमि दिवस मनाया जाता है।

2 फरवरी, 1971 के दिन ही ईरान के रामसर शहर में आर्द्रभूमियों के संरक्षण से संबंधित रामसर अभिसमय/समझौते (Ramsar Convention) पर हस्ताक्षर किये गए, जिसकी 50वीं वर्षगाँठ वर्ष 2021 में मनाई जा रही है।

आर्द्रभूमियांँ पानी में स्थित मौसमी या स्थायी पारिस्थितिक तंत्र हैं। इनमें मैंग्रोव, दलदल, नदियाँ, झीलें, डेल्टा, बाढ़ के मैदान और बाढ़ के जंगल, चावल के खेत, प्रवाल भित्तियाँ, समुद्री क्षेत्र (6 मीटर से कम ऊँचे ज्वार वाले स्थान) के अलावा मानव निर्मित आर्द्रभूमि जैसे अपशिष्ट-जल उपचार तालाब और जलाशय आदि शामिल होते हैं।

आर्द्रभूमियांँ कुल भू सतह के लगभग 6% हिस्से को कवर करती हैं। पौधों और जानवरों की सभी 40% प्रजातियाँ आर्द्रभूमि में रहती हैं।

आर्द्रभूमियांँ हमारे प्राकृतिक पर्यावरण का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये बाढ़ की घटनाओं में कमी लाती हैं, तटीय इलाकों की रक्षा करती हैं, साथ ही प्रदूषकों को अवशोषित कर पानी की गुणवत्ता में सुधार करती हैं।

मानव विकास और ग्रह (पृथ्वी) पर जीवन के लिये वेटलैंड महत्त्वपूर्ण हैं। 1 बिलियन से अधिक लोग जीवित रहने के हेतु आर्द्रभूमियों पर निर्भर हैं।

ये भोजन, कच्चे माल, दवाओं के लिये आनुवंशिक संसाधनों और जलविद्युत के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।

भूमि आधारित कार्बन का 30% पीटलैंड (एक प्रकार की आर्द्रभूमि) में संग्रहीत है।

ये परिवहन, पर्यटन और लोगों की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक कल्याण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

कई आर्द्रभूमियाँ प्राकृतिक सुंदरता के क्षेत्र हैं और आदिवासी लोगों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।[1]

आर्द्रभूमि को बायोलॉजिकल सुपर-मार्केट कहा जाता है, क्योंकि ये विस्तृत भोज्य-जाल (Food-Webs) का निर्माण करते हैं।

फूड-वेब्स यानी भोज्य-जाल में कई खाद्य श्रृंखलाएँ शामिल होती हैं और ऐसा माना जाता है कि फूड-वेब्स पारिस्थितिक तंत्र में जीवों के खाद्य व्यवहारों का वास्तविक प्रतिनिधित्व करते हैं।

एक समृद्ध फूड-वेब समृद्ध जैव-विविधता का परिचायक है और यही कारण है कि इसे बायोलॉजिकल सुपर मार्केट कहा जाता है।

आर्द्रभूमि जंतु ही नहीं बल्कि पादपों की दृष्टि से भी एक समृद्ध तंत्र है, जहाँ उपयोगी वनस्पतियाँ एवं औषधीय पौधे भी प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। अतः ये उपयोगी वनस्पतियों एवं औषधीय पौधों के उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

दुनिया की तमाम बड़ी सभ्यताएँ जलीय स्रोतों के निकट ही बसती आई हैं और आज भी वेटलैंड्स विश्व में भोजन प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

आर्द्रभूमि के नज़दीक रहने वाले लोगों की जीविका बहुत हद तक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन पर निर्भर होती है।

आर्द्रभूमि ऐसे पारिस्थितिकीय तंत्र हैं जो बाढ़ के दौरान जल के आधिक्य का अवशोषण कर लेते हैं। इस तरह बाढ़ का पानी झीलों एवं तालाबों में एकत्रित हो जाता है, जिससे मानवीय आवास वाले क्षेत्र जलमग्न होने से बच जाते हैं।

इतना ही नहीं ‘कार्बन अवशोषण’ व ‘भू जल स्तर’ में वृद्धि जैसी महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वहन कर आर्द्रभूमि पर्यावरण संरक्षण में अहम योगदान देते हैं।[2]

आर्द्रभूमि के लिए विश्व संगठन खतरे को भांप रही है जी कि निम्न है:

आर्द्रभूमियों पर गठित जैव विविधता तथा पारिस्थितिकी तंत्र सेवा पर अंतर-सरकारी विज्ञान नीति प्लेटफॉर्म (Intergovernmental Science-Policy Platform on Biodiversity and Ecosystem Services[3] ) के अनुसार, ये सबसे अधिक विक्षुब्ध पारिस्थितिकी तंत्रों में शामिल हैं।

आर्द्रभूमि मानव गतिविधियों और ग्लोबल वार्मिंग के कारण जंगलों की तुलना में 3 गुना तेज़ी से समाप्त हो रही है।

यूनेस्को के अनुसार, आर्द्रभूमि के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न होने से विश्व के उन 40% वनस्पतियों और जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जो इन आर्द्रभूमि में पाए जाते हैं या प्रजनन करते हैं।

प्रमुख खतरे: कृषि, विकास, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन।

भारत में लगभग 4.6% भूमि आर्द्रभूमि के रूप में है जो 15.26 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करती है। भारत में 42 स्थल हैं जिन्हें आर्द्रभूमि के रूप में अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व (रामसर[4] स्थल) का नामित किया गया है।

रामसर स्थलों के रूप में घोषित आर्द्रभूमियों को सम्मेलन के सख्त दिशा- निर्देशों के तहत संरक्षण प्रदान किया गया हैं।

वर्तमान में वैश्विक स्तर पर 2,300 से अधिक रामसर साइटस विद्यमान हैं।

हाल ही में लद्दाख स्थित त्सो कार आर्द्रभूमि क्षेत्र (Tso Kar Wetland Complex) को भारत के 42वें रामसर स्थल के रूप में मान्यता दी गई है।

आर्द्रभूमियों का विनियमन आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 के तहत किया जाता है।

केंद्रीय आर्द्रभूमि नियामक प्राधिकरण हेतु वर्ष 2010 में बनाए गए नियमों को राज्य-स्तरीय निकायों के साथ वर्ष 2017 में परिवर्तित किया गया तथा एक राष्ट्रीय आर्द्रभूमि समिति का गठन किया गया जो सलाहकार की भूमिका में है।

भारत सरकार ने देश भर में आर्द्रभूमि/वेटलैंड्स के संरक्षण के लिए नियमों का एक नया सेट अधिसूचित किया है। पर्यावरण मंत्रालय द्वारा निर्धारित नियम 6 जनवरी 2020 को जारी किया गया था।

नए नियमों ने ‘आर्द्रभूमि’ की परिभाषा से कुछ वस्तुओं को हटा दिया जिसमें बैकवाटर (Backwater) लैगून (Lagoon), क्रीक (Creek) और एस्ट्रुअरीज़ (Estuaries) शामिल हैं।

वर्ष 2017 के नियमों के तहत आर्द्रभूमि की पहचान करने की ज़िम्मेदारी राज्यों को सौंपी गई है।

नियमों का नया सेट:

नए नियम उद्योगों की स्थापना या विस्तार और वेटलैंड्स के भीतर निर्माण और विध्वंस कचरे के निपटान पर रोक लगाते हैं।

नियम प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश (UT) में प्राधिकरण स्थापित करना सुनिश्चित करते हैं।

प्राधिकरण को निर्देश दिया गया है कि 3 महीने के भीतर राज्य / केंद्रशासित प्रदेश के सभी वेटलैंड्स की एक सूची तैयार करें और अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर वेटलैंड्स के संरक्षण और उपयोग के लिए रणनीति बनाएं।

अधिकारी को अधिसूचित आर्द्रभूमि की सीमा के भीतर भूमि के लिए प्रचार गतिविधियों के माध्यम से पारिस्थितिक चरित्र को बनाए रखने के लिए तंत्र की सिफारिश करनी चाहिए।

प्राधिकरण में वेटलैंड इकोलॉजी, फिशरीज, हाइड्रोलॉजी, लैंडस्केप प्लानिंग और सोशियो-इकोनॉमिक्स के क्षेत्रों में एक-एक विशेषज्ञ शामिल होंगे।

विशेषज्ञों को राज्य सरकार द्वारा नामित किया जाएगा।[5]

कुल मिला कर विश्व के पर्यावरणविद आर्द्रभूमि के क्षरण से चिंतित है इसलिए बीते २ फरवरी २०२१ को विश्व आर्द्रभूमि दिवस[6] (World Wetland Day) के अवसर पर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राष्ट्रीय सतत् तटीय प्रबंधन केन्द्र[7] (National Centre for Sustainable Coastal Management- NCSCM) के एक भाग के रूप में आर्द्रभूमि संरक्षण और प्रबंधन केंद्र (Centre for Wetland Conservation and Management- CWCM) स्थापित करने की घोषणा की।

इसका मुख्य उद्देश्य हीं आर्द्रभूमि संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठाना और नियम के अनुसार उसका समन्वय करना है। इसे नजर अंदाज करने का परिणाम, ग्लोबल वार्मिंग, के साथ साथ उन ४०% जलीय जंतुओं और वनस्पतियों के समूल नास से संबंधित है जो इन आर्द्रभूमि में निवास करते और प्रजनन करते हैं। इन आर्द्रभूमि क्षरण से कृषिभूमि, जलवायु और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्द्रभूमि संरक्षण पर जोर दिया जा रहा है इसमें पीछे नहीं।

अनेक धन्यवाद।